कभी ऐसा महसूस हुआ है कि आप एक रोल प्ले कर रहे हैं? 🤔 मैं तो सालों तक यही करती रही। मेरी ज़िंदगी आत्म-स्वीकृति की बजाय दूसरों को खुश करने की एक लंबी दौड़ थी। मैंने अपने वास्तविक स्वयं को दबा कर रखा था। फिर एक दिन, थक कर बैठ गई। मैंने अपने असली रूप को अपनाने की इस यात्रा को शुरू किया। यह आत्म-प्रेम और आत्म-खोज का सफर था। और यह कहानी है उसी की।
वह मुखौटा जो मैंने पहना हुआ था
स्कूल से लेकर ऑफिस तक, मैं वही बनने की कोशिश करती थी जो दूसरे चाहते थे। “अच्छी लड़की”। “परफेक्ट एम्प्लॉई”। मेरी अपनी आवाज़ कहीं दब सी गई थी। एक रिसर्च के मुताबिक, 70% लोग मानते हैं कि वे सोशल मीडिया पर अपने असली स्वयं नहीं हैं। मैं भी उनमें से एक थी। मैंने एक लिस्ट बनाई अपनी उन चीजों की जो मैं सच में पसंद करती थी:
- भीड़ में अकेले बैठकर किताब पढ़ना (जबकि दोस्त पार्टी का प्रेशर देते)।
- गाना गाना, भले ही सुर में न हो।
- बेवजह हंसना, बिना इसकी परवाह किए कि कोई क्या सोचेगा।
ये छोटी-छोटी बातें मेरे व्यक्तिगत विकास की नींव बनीं।

वह पल जब सब टूटा
मेरे 25वें जन्मदिन पर सब कुछ बदल गया। मेरे लिए एक सरप्राइज पार्टी का आयोजन किया गया था। कमरे में चारों तरफ लोग, म्यूजिक, और खुशियाँ थीं। और मैं? मैं बाथरूम में बैठकर चुपचाप रो रही थी। मैं बिल्कुल अकेली महसूस कर रही थी। उस भीड़ में भी। यही वह पल था जब मैंने महसूस किया कि मैं अपनी ही ज़िंदगी में एक मेहमान बनकर रह गई हूँ। मैंने खुद से एक सवाल पूछा: “क्या मैं वाकई खुश हूँ, या बस दिखावा कर रही हूँ?” इस सवाल ने मेरी आत्म-अन्वेषण की शुरुआत कर दी।
अपने आप से सवाल जो मैंने पूछे
मैंने एक डायरी शुरू की। रोजाना, बिना लिखे-पढ़े, बस अपने दिल की बात उड़ेल देना। मैंने खुद से पूछा:
- मैं वास्तव में कौन हूँ, बिना किसी लेबल के?
- मेरे दिल की गहराई में क्या चाहतें छुपी हैं?
- अगर कोई जज नहीं करेगा, तो मैं कैसा जीवन जीऊंगी?
इन सवालों ने मुझे अपने भीतर झांकने का साहस दिया। यह आत्म-साक्षात्कार का पहला कदम था।

असली ‘मैं’ से मुलाकात
यह प्रक्रिया आसान नहीं थी। इसमें बहुत सारे उतार-चढ़ाव आए। कभी गुस्सा आता, कभी रोना आता। लेकिन धीरे-धीरे, मैंने अपने अंदर की उस लड़की से दोस्ती करनी शुरू की जिसे मैंने सालों से अनदेखा कर रखा था। मैंने अपनी कमजोरियों को गले लगाया। मैंने अपनी ताकत को पहचाना। मैंने सीखा कि आत्म-प्रेम सिर्फ अच्छे पलों में नहीं, बल्कि अपने टूटे हुए हिस्सों को भी स्वीकार करना है।
मैंने क्या खोजा?
मेरी आत्म-खोज ने मुझे कुछ अद्भुत चीजें दिखाईं:
- मुझे अकेलेपन से प्यार है। यह मेरी क्रिएटिविटी का स्रोत है।
- मैं बहुत इमोशनल हूँ, और यह मेरी ताकत है, कमजोरी नहीं।
- मेरे पास दूसरों की भावनाएं समझने का एक खास तोहफा है।
इन छोटी-छोटी खोजों ने मेरे व्यक्तिगत विकास को एक नई दिशा दी।

