क्या आपने कभी महसूस किया है कि आप खुद से दूर होते जा रहे हैं? जैसे एक रूटीन में फँसकर रह गए हों। मैं ठीक वहीं थी। फिर एक दिन, मैंने अपना बैग उठाया और निकल पड़ी। यह कोई छुट्टी नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत थी। मेरा यह सफर मेरी खोई हुई पहचान को ढूँढने का एक जरिया बन गया। यही वह समय था जब सफर ने मुझे मुझसे कैसे मिलवाया। यह एक गहन आत्म-खोज का सफर था, जिसने मुझे वह आंतरिक शांति दिलाई जिसकी मुझे तलाश थी।
सच कहूँ तो, ऑफिस की चारदीवारी और रोज़ की भागदौड़ ने मुझे एक रोबोट बना दिया था। मैं वह व्यक्ति भूल सी गई थी जो कभी खुश रहा करती थी। मैं बस जी रही थी, लेकिन वास्तव में *जी* नहीं रही थी। क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है?
तभी मैंने एक सस्ती फ्लाइट बुक कर ली। कहाँ जाना है, यह तक पता नहीं था। बस निकल पड़ना था। यह मेरी पहली बड़ी, अकेली यात्रा थी। और यही वह पल था जिसने सब कुछ बदल दिया।
अकेलेपन में मिली अपनी आवाज़
जब आप अकेले होते हैं, तो आपका दिमाग बातें करना शुरू कर देता है। वो बातें जो आप रोज़मर्रा के शोर में सुन नहीं पाते। हिमालय की एक शांत घाटी में बैठकर, मैंने पहली बार खुद से सवाल पूछे।
- “क्या मैं वास्तव में खुश हूँ?”
- “मेरे जीने का असली मकसद क्या है?”
- “मैं दुनिया के लिए क्या बदलाव ला सकती हूँ?”
एक रिसर्च के मुताबिक, 72% लोग जो अकेले यात्रा करते हैं, उनका मानना है कि इससे उनका आत्म-जागरण हुआ। मैं अब उस 72% का हिस्सा थी।
अनजान लोगों ने सिखाए बड़े सबक
यात्रा में मिले लोग मेरे असली गुरु बन गए। एक बुजुर्ग साधु ने मुझसे कहा, “बेटा, तुम जहाँ हो वहीं से शुरुआत करो। खोजने के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं।” यह बात मेरे दिल में उतर गई।
मैंने एक छोटे से गाँव के बच्चों के साथ समय बिताया। उनकी मासूम हँसी और छोटी-छोटी चीज़ों में खुशी ढूँढना… यह मेरे लिए एक बड़ा सबक था। मैंने सीखा कि खुशी महंगे शॉपिंग मॉल में नहीं, बल्कि छोटे-छोटे पलों में छुपी होती है।
मेरी तीन बड़ी सीखें:
- डर के आगे जीत है: अकेले ट्रेन का सफर, नए लोगों से बातचीत… हर चीज़ ने मुझे मजबूत बनाया।
- कम में गुज़ारा: एक छोटे बैकपैक के साथ पूरा महीना कैसे गुज़ारा जा सकता है, यह मैंने सीखा।
- भरोसा करना: अनजान शहर में अनजान लोगों ने मेरी मदद की। इसने मुझे इंसानियत पर भरोसा दिलाया।
वापसी, लेकिन एक नए इंसान के रूप में
जब मैं घर लौटी, तो सब कुछ वैसा ही था। ऑफिस वही था, घर वही था। लेकिन *मैं* बदल चुकी थी। मेरे अंदर एक अलग ही तरह की शांति और स्पष्टता थी। यह सचमुच एक जीवन बदलने वाली यात्रा साबित हुई।
मैंने पहले से ज्यादा माइंडफुलनेस प्रैक्टिस शुरू की। छोटी
